चाँदनी रात में सितारों के बीच में ;
अक्सर तुम नज़र आती हो
शाम की तन्हाईयों में; धूमिल होते रास्तों में
अक्सर तुम ही याद आती हो।
होती है जब तुम्हारी खुमारी सीमाओं से परे
तो तुम सहज ही मेरी कविता में उतर आती हो।
चाँदनी की शीतलता में ; या पूर्वहिया मधुरता में
बसंत की बेल में या सावन की चंचलता में
प्रकृति के हर प्रेेम अनुभावों में ;
हमेशा तुम ही मुस्कुराती नज़र आती हो।
मिलता हूँ जब मैं तेरे इन मनोहर रूपों से
तो तुम सहज ही मेरी कविता का श्रृंगार बन जाती हो।
mast poem hai..and the pic is awsom
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